हम वो थे..जो लड़कपन में सिर्फ लड़कियों या महंगे कपड़ों के बारे में ही नहीं, दुनिया के बारे में भी सोचा करते थे..।
हम वो थे..जिन्होंने टीवी चैनलों के चमचमाते सेट्स पर नामचीन लोगों को देखकर..बदलाव की राह के तौर पर मीडिया को चुना..।
उम्मीद एक सार्थक जीवन की थी..। जज्बा..कुछ कर दिखाने का..।
लेकिन इस ख्वाहिश के एवज़ में मिली मीडिया के guantanamo bay(read etv) में सपनों को कैद..।
आखिर क्यों..?
क्या इसलिए नहीं, कि उन ऊंची अट्टालिकाओं में बैठे उस बिग बॉस के दिमाग में हमारी मेहनत की लूट के शातिर नक्शे पल रहे थे..।
क्या इसलिए नहीं, कि उनके पास खरीदने की कुव्वत है और हमारे पास बिकने के सिवाए चारा नहीं..।
रास्ते दो ही हैं। या तो ETV के उस ज़हरीले पेड़ से निकले सस्ते फल बनकर मीडिया की एक मंडी से दूसरी मंडी में ताउम्र बिकते रहें..। या नयेपन के साथ कलम की क्रांति के बीज बनें..।
किसी ने कहा है- EVEN A JOURNEY OF THOUSAND MILES STARTS FROM A SINGLE STEP..ये पहला कदम, ETV में कैद न जाने कितने सपनों को वेतन की गुलामी से आज़ादी दिला सकता है..। ऐसी उम्मीद है..।
और हम अकेले नहीं। दिल्ली के पत्रकार जगत के कुछ ऐसे लोग..जो इस भेड़ियाधसान में भी खुद को जिंदा रख पाए हैं..। आज हमारे साथ हैं..।
उनके हथियार बहुत पैने हैं..और एक होना वक्त की ज़रुरत बन गया है..।
ये मुहिम ऐसे हर निजाम के खिलाफ़ है जहां मेहनत और काबिलियत किसी तिजोरी की रक्कासा है..।
Sunday, September 7, 2008
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1 comment:
नाम बड़े और दर्शन छोटे... नए लोगों के लिए सलाह.. जरा संभल कर चलना नहीं तो राक्षसी प्रवृति वाले टीवी चैनलों के जाल में फंस जाओगे...
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